!! OM ATMAGURVE NAMAH !! !! OM ATMAGURVE NAMAH !! !! OM ATMAGURVE NAMAH !! !! OM ATMAGURVE NAMAH !! !! OM ATMAGURVE NAMAH !!
!! ॐ आत्मागुरवे नमः !!
!! OM ATMAGURVE NAMAH !! !! OM ATMAGURVE NAMAH !! !! OM ATMAGURVE NAMAH !! !! OM ATMAGURVE NAMAH !! !! OM ATMAGURVE NAMAH !!
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स्फोट वही
उद्गीत वही
ब्रह्मनाद शब्द
ध्वनिधार वही
स्फोट वही
उद्गीत वही
ब्रह्मनाद शब्द
ध्वनिधार वही
स्फोट वही
उद्गीत वही
ब्रह्मनाद शब्द
ध्वनिधार वही
स्फोट वही
उद्गीत वही
ब्रह्मनाद शब्द
ध्वनिधार वही
स्फोट वही
उद्गीत वही
ब्रह्मनाद शब्द
ध्वनिधार वही
स्फोट वही
उद्गीत वही
ब्रह्मनाद शब्द
ध्वनिधार वही
स्फोट वही
उद्गीत वही
ब्रह्मनाद शब्द
ध्वनिधार वही
मानव का प्रत्येक कर्म यज्ञ है, पवित्रता से करो ! - स्फोटाचार्य
स्फोट वही
उद्गीत वही
ब्रह्मनाद शब्द
ध्वनिधार वही
स्फोट वही
उद्गीत वही
ब्रह्मनाद शब्द
ध्वनिधार वही
स्फोट वही
उद्गीत वही
ब्रह्मनाद शब्द
ध्वनिधार वही
स्फोट वही
उद्गीत वही
ब्रह्मनाद शब्द
ध्वनिधार वही
स्फोट वही
उद्गीत वही
ब्रह्मनाद शब्द
ध्वनिधार वही
स्फोट वही
उद्गीत वही
ब्रह्मनाद शब्द
ध्वनिधार वही
स्फोट वही
उद्गीत वही
ब्रह्मनाद शब्द
ध्वनिधार वही
 
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ना होगी गरीबी-बीमारी, अलौकिक होंगे नर व नारी !
प्रेम लीला ही जग में होगा न होगी कोई तैयारी !!
          - ब्रह्मर्षि स्फोटाचार्य
sfot

महाब्रह्माण्डीय चेतना परब्रह्म महायज्ञ
( आत्मज्ञान महायज्ञ )

पिछले पाँच हजार वर्षों में
विश्व-ब्रह्माण्ड का प्रथम सार्वभौम महायज्ञ
UNI20

हवनात्मक एवं भावनात्मक यज्ञ - दोनो के विधि वैभव की पराकाष्ठा - एक सम्पूर्ण यज्ञ

परमगुरु परमात्मा की असीम कृपा से प्रेरित तथा आध्यात्मिक, वैदिक एवं वैज्ञानिक कसौटी से अभिभूत - पिंड, ब्रह्माण्ड, ब्रह्म एवं आत्मा के रहस्यों का समूल एवं सम्पूर्ण उद्बोधन

अनुदान, आह्वान, उद्घोषणा एवं आमंत्रण

हे अमृतांश ! हे आर्य-वीर्य के पुत्र एवं पुत्रियों !

        इस मन्वन्तर के इस कल्प में परम दिव्य एवं विराट स्वरुप परब्रह्म का यह यज्ञ सम्पूर्ण विश्व के इस कालचक्र के किसी भी कालखंड में आयोजित तथा उद्घोषित नहीं किया गया है, न ही किसी संतों ने परब्रह्म से तदाकार स्थापित किया है और न ही सम्पूर्ण ब्रह्म को प्राप्त किया है ι ऐसा होना भी इस कल्प को पूरा करने हेतू ईश्वर की ही माया है ι इस विषय का उद्घोष स्वयं परमगुरु परमात्मा ने ही किया है, जिसका प्रमाण - "सहस्त्रार" में भगवान शंकर एवं माता पार्वती के संवाद से उजागर किया जा सकता है, जो शास्त्रों में भी निर्दिष्ट है ι शास्त्रानुसार इस वर्तमान "महासंधिबेला" में यह असंभव कार्य परमगुरु परमात्मा की कृपा से होना तय है ι

        इसी दृष्टान्त का एक वस्तुनिष्ट झलक इस यज्ञ के द्वारा करने का एक प्रयास मात्र है ι इस यज्ञ से मनुष्य की अध्यात्मिक एवं मानसिक चेतना के विकसित होने की पूर्ण संभावना व्यक्त की जा सकती है, जिससे अतिमानस का परिमार्जन अधिमानस के रूप में होना संभव है ι यह यज्ञ सभी यज्ञों से श्रेष्ठ है एवं अभी तक के सभी यज्ञों से अद्भुत होगा तथा अचिन्त्य परिवर्तन होने की पूर्ण संभावना व्यक्त की जा सकती है ι साथ ही अनेक ऋषि एवं साधक अपने अनंतताऔं की अनेक संभावनाओं के साथ निश्चय ही परब्रह्म के साथ तदाकार एवं तादात्म्य स्थापित करेंगे ι यह इस सृष्टि के इस कल्प का सर्वप्रथम एवं सबसे अद्भुत यज्ञ होगा ι

        सृष्टि के इस कल्प में अभी तक इस "विराट-पुरुष परब्रह्म" को वैष्णवों ने विष्णु रूप को, शैवियों ने शंकर रूप को एवं अन्य ने किसी निर्दिष्ट अन्य को ही आहुति प्रदान किया है अर्थात् किसी-न-किसी विकल्प को ही आहूत किया है ι इस यज्ञ की सबसे बड़ी विशेषता होगी कि मूल "परब्रह्म (प्रकृति-पुरुप व ब्रह्माण्डीय चेतना)" को आहूति प्रदान किया जायेगा, क्योंकि वेद-शास्त्र-उपनिषद एवं संतों ने अन्धकार सहित सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को ही परम ब्रह्म बताया है और यही शाश्वत-सत्य भी है ι साथ ही असुर, इंद्रा, सर्व देवता, नवग्रह एवं यमराज सहित ब्रह्माण्ड के सभी घटकों को "ब्रह्माण्डीय चेतना परब्रह्म" को साक्षी रूप में व्यक्त कर एक साथ आहुति प्रदान किया जायेगा ι

        इस यज्ञ में ब्रह्माण्ड के तीनों गुणों "सत, रज, तम (आध्यात्मिक, आदिदैविक एवं आधिभौतिक) प्रणालियों के समष्टि का ज्ञान आलोकित किया जायेगा, क्योंकि अभी तक के संतों ने इस स्थिति से नीचे की साधना व ज्ञान को ही उजागर किया है, जिसे "ब्रह्मनिर्वाण" कहा गया है तथा इस ज्ञान को "श्रीकृष्ण, ब्रह्मऋषि वशिष्ट एवं अन्य वैदिक ऋषियों के लिए ही संभव व उपयुक्त बताया है ι इसलिए इस यज्ञ के द्वारा मनःस्थिति के मानवों को अतिविशिष्ट ज्ञान के लाभों के प्रणेता बनने का सुअवसर प्राप्त होगा ι

        अतः इस यज्ञ में आप सबों का यथाशक्ति सहयोग एवं सहभागिता की पूर्ण आवश्यकता है ι इस महायज्ञ में महादान एवं सहयोग देकर महापुण्य के भागी बनें तथा यथार्थ तत्वज्ञान एवं आत्मज्ञान का प्रसाद ग्रहण कर जीवन को चरितार्थ करें, साथ ही परब्रह्म से तदाकार एवं तादात्म्य स्थापित करें ι - स्फोटाचार्य





इस यज्ञ में प्रकाशित किये जाने वाले महत्वपूर्ण बिन्दुएँ

(१) अनेक मतों के संत-महात्माओं, तत्वज्ञानियों एवं आत्मज्ञानियों का समागम ι (२) कलाकारों एवं वाध्य कलाकारों का संगम ι (३) अध्यात्म का वास्तविक मूल परिभाषा एवं महत्व - मानसिक चेतना का परिमार्जन ι (४) आत्मा गुरु क्यों और कैसे - गीता, भगवान दत्तात्रेय एवं गोरक्षनाथ का संकेत सूत्र ι (५) मानव जीवन में सात गुरुऔ का महत्त्व एवं कार्य - संतशिरोमणि कबीरदास को समर्पित ι (६) ज्ञान, गुरु, शिष्य एवं दीक्षा का महत्त्व - वेद (शब्द) स्वरुप ब्रह्म को समर्पित ι (७) सभी मतों एवं धर्मों की समष्टि "सत्यधर्म, एक सार्वभौम धर्म - स्वामी विवेकानंद को समर्पित ι (८) सौ साल बाद स्वामी विवेकानंद के प्रश्नों का हल ι (१०) महागुरु श्रीअरविंद एवं श्रीमां के संदेहों का समाधान - श्री एवं श्रीमां को समर्पित ι (११) सत्य, सनातन, हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई, यहूदी आदि सबका मालिक एक कैसे? - सिरडी के साई बाबा को समर्पित ι (१२) पिछले पाँच हजार वर्षों में संतों द्वारा एक-एक रहस्य की खोज में सहयोग का उद्बोधन ι (१३) रामायण के चार घाटों का महत्त्व ι (१४) पिछले पाँच हजार वर्षों में किसी भी संतों द्वारा ब्रह्म को प्राप्त न करने की शास्त्रीय प्रमाणिकता ι (१५) "आत्मज्ञान ही मोक्ष" का विश्लेषण ι (१६) गुरु पूर्णिमा का वास्तविक रहस्य एवं महत्त्व ι (१७) त्रेतायुग में परमात्मा के आदेशानुसार वेदों के सुसज्जीकरण का रहस्य एवं द्विअर्थी शब्दों में प्रकाशन का महत्व ι (१८) मोक्ष का महत्व - जीवन-मरण से मुक्ति नहीं वरन जीवन-मरण के बंधन से मुक्ति ι (१९) कलियुग में बस नाम आधार का रहस्य ι (२०) आत्मा ही सर्वज्ञ एवं सर्वोत्तम गुरु का विश्लेषण ι (२१) चतु:श्लोकी भगवत का विश्लेषण एवं महत्व - भागवत व अध्यात्म का मूल रहस्य ι (२२) अध्यात्म एवं विज्ञान के समरूपता की पूर्ण व्याख्या - वैज्ञानिक संतों को समर्पित ι (२३) सभी मतों, संतों एवं धर्मों की समानता - आत्मा एवं परमात्मा ι (२४) संतों का भेद और पंडितों का वेद का महत्व ι (२५) बौद्धिक विकास हेतु "मन भिन्न, आत्मा अभिन्न" की प्रमाणिकता ι (२६) पिण्ड (शरीर) एवं ब्रह्माण्ड का रहस्य - मानव संरचना ही आत्मा, परमात्मा एवं प्रकृति का मूल रहस्य ι (२७) "पिंडे स ब्रह्माण्डे, ब्रह्माण्डे स पिंडे" की पूर्ण प्रमाणिकता एवं प्रायोगिकता ι (२८) जीव हेतु भौतिक शरीर एवं आत्मा दोनों भ्रम ι (२९) ब्रह्मज्ञान एवं आत्मज्ञान का विश्लेषण एवं महत्त्व ι (३०) महर्षि पाणिनि के सूत्रों में योग - डॉ. आत्मविश्वास ι (३१) मानव ईश्वर के संतान नहीं बल्कि भ्रूण - की रहस्य गाथा ι (३२) आत्मज्ञान व तत्वज्ञान पर विशेष दृष्टि - जो तत्व से जानता है वाही यथार्थ जानता है - गीता ι (३३) परमात्मा स्वरुप के पांचो भागों व रूपों की समष्टि से सम्पूर्ण ब्रह्म की परिभाषा ι (३४) प्राणायाम का प्रयाण ι (३५) उपदेश रहित - उपदेशक अहित सत्संग ι (३६) शब्द, अक्षर एवं वर्णों की पराकाष्ठा - ध्वनिनाद ι (३७) वर्तमान युग में लक्षविहीन छात्र-छात्राओं हेतु "प्रणज्ञान कला" की मौलिकता ι (३८) शब्द ब्रह्म का तत्व ही परब्रह्म का रहस्य ι (३९) परम्परागत शिवलिंग "गणित के एक्स मान" के बराबर - क्यों और कैसे? (४०) आगम एवं निगम वेदों का रहस्य ι (४१) तंत्र, मंत्र, यन्त्र एवं विद्याओं की पराकाष्ठा "संकल्प" का विश्लेषण ι (४२) कुण्डलिनी तंत्र का विस्तार एवं सरलीकरण ι (४३) पदार्थ : स्थूल विज्ञान, शब्द : सूक्ष्म विज्ञान एवं तत्व : समर्पण विज्ञान ι (४४) सर्वव्यापक एवं सर्व्याप्त का महत्त्व ι (४५) काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार की परिभाषा ι (४६) ब्रह्माण्ड शब्द का महत्त्व एवं रहस्य ι (४७) ब्रह्मा, विष्णु, महेश के जन्मदाता : आत्मा/परमात्मा/ब्रह्म ι (४८) ब्रह्म के जन्मदाता : परब्रह्म/ईश्वर-माया/शिव-शक्ति/प्रकृति-पुरुष ι (४९) निराकार व साकार की सही परिभाषा ι (५०) सृष्टि (ब्रह्माण्ड) के चक्रीकरण (रिवर्स) का महत्त्व - चिकित्सा पद्धति द्वारा प्रमाण ι (५१) कर्म का भेद एवं महत्त्व ι (५२) चतुर्युग के सत्यों, तथ्यों व तत्वों का महत्व ι (५३) निर्जीव ब्रह्म का प्राण-प्रतिष्ठा, सजीव ब्रह्म का कोई प्रतिष्ठा नहीं : सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड परब्रह्म के चैतन्य शरीर की प्रमाणिकता ι (५४) सम्पूर्ण विश्व-ब्रह्माण्ड में सत्य-सनातन धर्म सर्वश्रेष्ठ क्यों और कैसे की वैज्ञानिक प्रमाणिकता ι (५५) शास्त्रीय पांचो मोक्ष एक आसक्ति ι (५६) असम्प्रज्ञात (निर्जीव) समाधि से धर्ममेघ समाधि तक का रहस्योबोधन ι (५७) कृष्ण, वशिष्ठ एवं वैदिक ऋषियों के ज्ञान का पुनर्प्रकाशन ι (५८) बुद्धियोग की पराकाष्ठा ι (५९) सबसे बड़ा सौदागर (ईश्वर) एवं सबसे सस्ता सौदा ι (६०) ग्राह्य साधक (समझने वाले) को ज्ञानेन्द्रियों द्वारा भी आत्मदर्शन ι - स्फोटाचार्य

Service of a man is the service of God.

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